कोने में बैठ कर क्यों रोता है, Motivational Poem in Hindi

जब हमारा हौसला और साहस कमजोर पड़ जाता है। तब ऐसे समय में मोटीवेट होने की बहुत जरूरत होती है। जिससे हम अपने आप में एक नई ऊर्जा पैदा कर सकते है और खुद की सोच को सकारात्मक कर सकते हैं। " "कोने में बैठ कर क्यों रोता है" इसी प्रकार का सकारात्मक कविता है। जिसे पढ़ कर अपने जीवन में एक नई ऊर्जा पैदा कर सकते है।  

Motivational Poem in Hindi
Motivational Poem in Hindi

कोने में बैठ कर क्यों रोता है - हिंदी लिरिक्स

कोने में बैठ कर क्यों रोता है,
यू चुप चुप सा क्यों रहता है।

आगे बढ़ने से क्यों डरता है,
सपनों को बुनने से क्यों डरता है।

तकदीर को क्यों रोता है,
मेहनत से क्यों डरता है।

झूठे लोगो से क्यों डरता है,
कुछ खोने के डर से क्यों बैठा है।

हाथ नहीं होते नसीब होते है उनके भी,
तू मुट्ठी में बंद लकीरों को लेकर रोता है।

भानू भी करता है नित नई शुरुआत,
सांज होने के भय से नहीं डरता है।

मुसीबतों को देख कर क्यों डरता है,
तू लड़ने से क्यों पीछे हटता है।

किसने तुमको रोका है,
तुम्ही ने तुम को रोका है।

भर साहस और दम, बढ़ा कदम,
अब इससे अच्छा कोई न मौका है।
...
नरेंद्र वर्मा
...
तुम मन की आवाज सुनो - लिरिक्स

तुम मन की आवाज सुनो,
जिंदा हो, ना शमशान बनो,
पीछे नहीं आगे देखो,
नई शुरुआत करो।

मंजिल नहीं, कर्म बदलो,
कुछ समझ ना आए,
तो गुरु का ध्यान करो,
तुम मन की आवाज सुनो।

लहरों की तरह किनारों से टकराकर,
मत लौट जाना फिर से सागर,
साहस में दम भरो फिर से,
तुम मन की आवाज सुनो।

सपनों को देखकर आंखें बंद मत करो,
कुछ काम करो,
सपनों को साकार करो,
तुम मन की आवाज सुनो।

इम्तिहान होगा हर मोड़ पर,
हार कर मत बैठ जाना किसी मोड़ पर,
तकदीर बदल जाएगी अगले मोड़ पर,
तुम अपने मन की आवाज सुनो।
...
-नरेंद्र वर्मा

हर पल है जिंदगी का उम्मीदों से भरा - लिरिक्स

हर पल है जिंदगी का उम्मीदों से भरा,
हर पल को बाहों में अपनी भरा करो,
किस्तों में मत जिया करो।

सपनों का है ऊंचा आसमान,
उड़ान लंबी भरा करो,
गिर जाओ तुम कभी,
फिर से खुद उठा करो।

हर दिन में एक पूरी उम्र,
जी भर के तुम जिया करो,
किस्तों में मत जिया करो।

आए जो गम के बादल कभी,
हौसला तुम रखा करो,
हो चाहे मुश्किल कई,
मुस्कान तुम बिखेरा करो।

हिम्मत से अपनी तुम,
वक्त की करवट बदला करो,
जिंदा हो जब तक तुम,
जिंदगी का साथ ना छोड़ा करो,
किस्तों में मत जिया करो।

थोड़ा पाने की चाह में,
सब कुछ अपना ना खोया करो,
औरों की सुनते हो
कुछ अपने मन की भी किया करो,
लगा के अपनों को गले गैरों के संग भी हंसा करो,
किस्तों में मत जिया करो।

मिले जहां जब भी जो खुशी,
फैला के दामन बटोरा करो,
जीने का हो अगर नशा,
हर घूंट में जिंदगी को पिया करो,
किस्तों में मत जिया करो।
...
-विनोद तांबी

राह में मुश्किल होगी हजार - लिरिक्स

राह में मुश्किल होगी हजार,
तुम दो कदम बढाओ तो सही,
हो जाएगा हर सपना साकार,
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।

मुश्किल है पर इतना भी नहीं,
कि तू कर ना सके,
दूर है मंजिल लेकिन इतनी भी नहीं,
कि तु पा ना सके,
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।

एक दिन तुम्हारा भी नाम होगा,
तुम्हारा भी सत्कार होगा,
तुम कुछ लिखो तो सही,
तुम कुछ आगे पढ़ो तो सही,
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।

सपनों के सागर में कब तक गोते लगाते रहोगे,
तुम एक राह चुनो तो सही,
तुम उठो तो सही, तुम कुछ करो तो सही,
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।

कुछ ना मिला तो कुछ सीख जाओगे,
जिंदगी का अनुभव साथ ले जाओगे,
गिरते पड़ते संभल जाओगे,
फिर एक बार तुम जीत जाओगे।

तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।
...
-नरेंद्र वर्मा

नर हो, न निराश करो मन को - लिरिक्स

नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रहकर कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को

नर हो, न निराश करो मन को

संभलो कि सुयोग न जाय चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न गिरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलंबन को

नर हो, न निराश करो मन को.

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को

नर हो, न निराश करो मन को

निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को

नर हो, न निराश करो मन को.

प्रभु ने तुमको कर दान किए
सब वांछित वस्तु विधान किए
तुम प्राप्त करो उनको न अहो
फिर है यह किसका दोष कहो
समझो न अलभ्य किसी धन को

नर हो, न निराश करो मन को.

किस गौरव के तुम योग्य नहीं
कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं
जान हो तुम भी जगदीश्वर के
सब है जिसके अपने घर के
फिर दुर्लभ क्या उसके जन को

नर हो, न निराश करो मन को

करके विधि वाद न खेद करो
निज लक्ष्य निरंतर भेद करो
बनता बस उद्यम ही विधि है
मिलती जिससे सुख की निधि है
समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को

नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो.
...
-स्व. मैथलीशरण गुप्त

महान लेखकों और विद्वानों ने कई ऐसी कविताएँ लिखी है, जिसे आप पढ़कर खुद में नई ऊर्जा का संचार कर सकते है, खुद को एक नये रास्ते पर अग्रेसित कर सकते है।
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