श्री दुर्गा जी की आरती | जय अम्बे गौरी, मैय्या जय श्यामा गौरी आरती |

नवरात्र के पहले द‍िन मां की पूजा में कलश स्‍थापना का भी व‍िधान है। मां की पूजा में मंत्र और आरती का जाप भी होता है। वहीं पूजा के फौरन बाद मां दुर्गा की आरती को भी अनिवार्य कहा गया है, नवरात्र में मां के नौ स्‍वरूपों की पूजा की जाती है। जय अम्बे गौरी मैया जय अम्बे गौरी के अलावा दुर्गा जी की आरती हर दिन के हिसाब से भी गाया और सुना जा सकता है।
Navratri 2022 Maa Durga Aarti
Navratri 2022 Maa Durga Aarti

🙏 श्री दुर्गा जी की आरती - लिरिक्स 🙏

। जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
॥ तुमको निशिदिन ध्.वत, हरि ब्रह्मा शिवरी॥
🙏👏 ओम जय अम्बे गौरी 🙏👏

। मांग सिंदूर विराजत, टीको जगमद को।
उज्जवल से दो नैना चन्द्रवदन नीको॥
🙏👏 ओम जय अम्बे गौरी 🙏👏

। कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।
॥ रक्तपुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै॥
🙏👏 ओम जय अम्बे गौरी 🙏👏

। केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी।
॥ सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहारी॥
🙏👏 ओम जय अम्बे गौरी 🙏👏

। कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
॥ कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति॥
🙏👏 ओम जय अम्बे गौरी 🙏👏

। शुंभ निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती।
॥ धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती॥
🙏👏 ओम जय अम्बे गौरी 🙏👏

। चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे।
॥ मधु-कैटव दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
🙏👏 ओम जय अम्बे गौरी 🙏👏

। ब्रम्हाणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी।
॥ आगम निगम बखानी, तुम शव पटरानी॥
🙏👏 ओम जय अम्बे गौरी 🙏👏

। चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों।
॥ बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू॥
🙏👏 ओम जय अम्बे गौरी 🙏👏

। तुम ही जग की माता, तुम ही भरता।
॥ भक्तन की दुख हरता सुख संपत्ति करता॥
🙏👏 ओम जय अम्बे गौरी 🙏👏

। भुजा चार अति शोभित, खडग खप्पर धारी।
॥ मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी॥
🙏👏 ओम जय अम्बे गौरी 🙏👏

। कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
॥ श्रीमालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति॥
🙏👏 ओम जय अम्बे गौरी 🙏👏

। श्री अम्बेजी की आरती, जो कोई नर गावे।
॥ कहत शिवानंद स्वामी, सुख संपति पावे॥
🙏👏 ओम जय अम्बे गौरी 🙏👏
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
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🙏 श्री दुर्गा चालीसा - लिरिक्स 🙏

। नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
॥ नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
। निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
॥ तिहूं लोक फैली उजियारी॥

। शशि ललाट मुख महाविशाला।
॥ नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥

। रूप मातु को अधिक सुहावे।
॥ दरश करत जन अति सुख पावे॥

। तुम संसार शक्ति लै कीना।
॥ पालन हेतु अन्न धन दीना॥
। अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
॥ तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

। प्रलयकाल सब नाशन हारी।
॥ तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
॥ ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

रूप सरस्वती को तुम धारा।
॥ दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
॥ परगट भई फाड़कर खम्बा॥

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।
॥ हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
॥ श्री नारायण अंग समाहीं॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
॥ दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
॥ महिमा अमित न जात बखानी॥

मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी।
॥ छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

केहरि वाहन सोह भवानी।
॥ लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै।
॥ जाको देख काल डर भाजै॥

। सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
॥ जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

। नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
॥ तिहुंलोक में डंका बाजत॥

। शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे।
॥ रक्तबीज शंखन संहारे॥
। महिषासुर नृप अति अभिमानी।
॥ जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

। रूप कराल कालिका धारा।
॥ सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

। परी गाढ़ संतन पर जब जब।
॥ भई सहाय मातु तुम तब तब॥

। अमरपुरी अरु बासव लोका।
॥ तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
॥ तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

। प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
॥ दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥

। ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
॥ जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

। जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
॥ योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो।
॥ काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥

। निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
॥ काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

। शक्ति रूप का मरम न पायो।
॥ शक्ति गई तब मन पछितायो॥

। शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
॥ जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
। भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
॥ दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

। मोको मातु कष्ट अति घेरो।
॥ तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥

। आशा तृष्णा निपट सतावें।
॥ रिपू मुरख मौही डरपावे॥

। शत्रु नाश कीजै महारानी।
॥ सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
। करो कृपा हे मातु दयाला।
॥ ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।

। जब लगि जिऊं दया फल पाऊं ।
॥ तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥

। दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।
॥ सब सुख भोग परमपद पावै॥

। देवीदास शरण निज जानी।
॥ करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

🙏👏 इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण 🙏👏
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देवी दुर्गा ने महिषासुर के आतंक से देवताओं को मुक्त करने के लिए उसका संहार किया देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध कर देवताओं को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलवाई, हालांकि उनका असली नाम दाक्षायनी था। यज्ञ कुंड में कुदकर आत्मदाह करने के कारण भी उन्हें सती कहा जाता है। बाद में उन्हें पार्वती के रूप में जन्म लिया। अगर आप भी नवरात्र के व्रत करते हैं तो मां की पूजा में मंत्र जाप जरूर करें और अंत में आरती भी करें।
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