शिवतांडव स्तोत्रम | रावण रचित शिव तांडव स्तोत्रम् | Shiva Tandava Stotram Lyrics

रावण रचित शिव तांडव स्तोत्रम्र, रावन सबसे बडे भक्त थे शिवजी के 4 वेद 6 षेस्तृ 18 पुराण मुप पाठ थे रावनको, भगवान  शिव ताण्डव स्तोत्रम मन्त्र नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करके सकारत्मक ऊर्जा का संचार करता है ,  ॐ नमः शिवाय, हम तो वो हैं... जिन्हें रावण से भी कुछ सीखने को मिले तो पूरे हृदय से आभार व्यक्त करके सीखते हैं... यही एक अच्छे विद्यार्थी के लक्षण हैं..शिव ताण्डव स्तोत्रम मन्त्र  मै जब भी यह सुनता हूं मुझे एक ऊर्जा महसूस होती है दुआ यही है मालिक से की जात-पात के भेदभाव मिटे। 

शिवतांडव स्तोत्रम | रावण रचित शिव तांडव स्तोत्रम् | Shiva Tandava Stotram Lyrics

कर्ता करे ना कर सके,

शिव करे सो होय,

तीन लोक नौ खंड में,

महाकाल से बड़ा ना कोय।

🚩🌹ॐ नम: सिवाय: हर हर महादेव🚩🌹🙏🏼






शिवतांडव स्तोत्रम | रावण रचित शिव तांडव स्तोत्रम् | Shiva Tandava Stotram Lyrics

Video Source- NH Creations Youtube channel

🔱 शिवतांडव स्तोत्रम  🔱


जटा-टवी-गलज्‌-जल-प्रवाह-पावित-स्थले, गलेऽव-लम्ब्य-लम्बितां-भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्‌ ॥

डमड्‌-डमड्‌-डमड्‌-डमन्‌-निनाद-वड्‌-डमर्वयं, चकार-चण्ड्‌-ताण्डवं-तनोतु-नः शिवः शिवम्‌ .. ।१।

जटा-कटा-हसं-भ्रम-भ्रमन्‌-निलिम्प-निर्झरी--विलोलवी-चिवल्लरी-विराजमान-मूर्धनि .॥

धगद्‌-धगद्‌-धगज्‌-ज्वल-ल्ललाट-पट्ट-पावके,  किशोर-चन्द्र-शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम .. ।२।


धरा-धरेन्द्र-नंदिनी-विलास-बन्धु-बन्धुर स्फुरद्‌-दिगन्त-सन्तति-प्रमोद-मान-मानसे .॥

कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरुद्ध-दुर्धरापदि, क्वचिद्‌-दिगम्बरे-मनो विनोद-मेतु वस्तुनि .. ।३।


जटा-भुजङ्ग-पिङ्गल-स्फुरत्‌-फणा-मणिप्रभा,  कदम्ब-कुङ्कुम-द्रव-प्रलिप्त-दिग्वधूमुखे ॥

मदान्ध-सिन्धुर-स्फुरत्त्व-गुत्तरी-यमे-दुरे मनो विनोदम्‌-अद्भुतं-बिभर्तु-भूत-भर्तरि .. ।४।


सहस्र-लोचन-प्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर,  प्रसून-धूलि-धोरणी-विधू-सराङ्घ्रि-पीठभूः ॥

भुजङ्ग-राज-मालया-निबद्ध-जाट-जूटक:श्रियै-चिराय-जायतां चकोर-बन्धु-शेखरः .. ।५।


ललाट-चत्वर-ज्वलद्‌-धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा- निपीत-पञ्च-सायकं-नमन्‌-नि-लिम्प-नायकम्‌ ॥

सुधा-मयूख-लेखया-विराजमान-शेखरं, महा-कपालि-सम्पदे-शिरो-जटाल-मस्तूनः* .. ।६।      

(*मस्तुनः)

कराल-भाल-पट्टिका-धगद्‌-धगद्‌-धगज्‌-ज्वलद्‌-धनञ्ज-याहुतीकृत-प्रचण्ड-पञ्च-सायके ॥

धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-कुचाग्र-चित्र-पत्रक -प्रकल्प-नैक-शिल्पिनि-त्रिलोचने-रतिर्मम (?मतिर्मम)  …।७।

नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत्‌,  कुहू-निशीथिनी-तमः प्रबन्ध-बद्ध(?बन्धु)-कन्धरः ॥

निलिम्प-निर्झरी-धरस्‌-तनोतु (? धरस्त-नोतु ) कृत्ति-सिन्धुरः कला-निधान-बन्धुरः श्रियं जगद्‌-धुरंधरः .. ।८।


प्रफुल्ल-नील-पङ्कज-प्रपञ्च-कालिम-प्रभा-वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचि-प्रबद्ध-कन्धरम्‌ .॥

 स्मरच्‌-छिदं, पुरच्‌-छिदं, भवच्‌-छिदं, मखच्‌-छिदं, गजच्‌-छिदां-धकछिदं, तमं-तकच्‌-छिदं भजे .. ।९।

अखर्व(?अगर्व)-सर्व-मङ्गला-कला-कदंब-मञ्जरी,  रस-प्रवाह-माधुरी विजृंभणा-मधु-व्रतम्‌ .॥

स्मरान्तकं, पुरान्तकं, भवान्तकं, मखान्तकं-गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्त-कान्तकं भजे .. ।१०।


जयत्व-दभ्र-विभ्रम-भ्रमद्‌-भुजङ्गम्‌-अश्वसद्‌-विनिर्गमत्क्रम-स्फुरत्कराल-भाल-हव्यवाट्‌॥

(Var: 

जयत्वदभ्र-विभ्रम-भ्रमद्‌-भुजङ्गम-स्फुरद्‌-धगद्‌-धगद्‌-विनिर्गमत्‌-कराल-भाल-हव्यवाट्‌॥ )

धिमिद्‌-धिमिद्‌-धिमि-ध्वनन्‌-मृदङ्ग-तुङ्ग-मङ्गल-ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित प्रचण्ड-ताण्डवः शिवः .. ।११।

दृषद्‌-विचित्र-तल्पयोर्‌-भुजङ्ग-मौक्तिकस्रजोर्‌-गरिष्ठ-रत्न-लोष्ठयोः सुहृद्‌*-विपक्ष*-पक्षयोः .॥  

( सुहृ-द्विपक्ष)

तृष्णार-विन्द-चक्षुषोः प्रजामही-महेन्द्रयोःसमम्‌-प्रवृतिकः* कदा सदाशिवं भजे ..।१२।  

( *प्रवर्त्यन्मनः )

कदा निलिम्प-निर्झरी-निकुञ्ज-कोटरे वसन्‌,  विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थम्‌ं-अञ्जलिं वहन्‌ .॥

विमुक्त-लोल-लोचनो ललाम-भाल-लग्नकः,  शिवेति मंत्रम्‌-उच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ .. ।१३।

निलिम्प नाथ-नागरी कदम्ब मौल-मल्लिका- निगुम्फ-निर्भक्षरन्म धूष्णिका-मनोहरः । 

तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनीं-महनिशं परिश्रय परं पदं तदंग-जत्विषां चयः ॥१४ ॥

 प्रचण्ड वाडवानल, प्रभा-शुभ-प्रचारणी, महाष्ट-सिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना । 

विमुक्त वाम लोचनो विवाह-कालिक-ध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्‌-जयाय जायताम्‌ ॥१५॥


इदम्‌ (?इमं) हि नित्यमेव-मुक्त-मुक्तम्‌-उत्तमं स्तवं, -पठन्‌-स्मरन्‌-ब्रुवन्‌-नरो विशुद्धिम्‌-इति-संततम्‌ .॥

(Var: इदम्‌ (?इमं) हि नित्यमेव-मुक्तम्‌-उक्तम्‌-उत्तमं स्तवं, -पठन्‌-स्मरन्‌-ब्रुवन्‌-नरो विशुद्धिम्‌-इति-संततम्‌ .॥

हरे गुरौ सुभक्तिम्‌-आशु याति न्‌-अन्यथा गतिं,  विमोहनं हि देहिनां तु-शङ्करस्य चिंतनम्‌ ..।१६। 

पूजा-वसान-समये दश-वक्त्र-गीतं यःशंभु-पूजन-परं पठति प्रदोषे .॥

तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तांलक्ष्मीं* सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः .. ॥

             (*रथ-गजेन्द्र-तुरङ्ग-युक्तां-लक्ष्मीं )

॥ इति श्री-रावण- कृतम्‌ शिव- ताण्डव- स्तोत्रम्‌ सम्पूर्णम्‌ ॥

...

अकाल मृत्यु वो मरे जो काम करे जो काम करे चंडाल का।

काल भी उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का।


हर हर महादेव🙏🙏

हर हर महादेव🙏🙏

हर हर महादेव🙏🙏

हर हर महादेव🙏🙏

🙏🙏🙏 जय श्री महाकाल 🙏🙏🙏


🚩🌹ॐ नम: सिवाय: हर हर महादेव🚩🌹🙏🏼
रामचरितमानस में राम ने कहा है,
शंकर भजन बिनु नर पावही न भक्ति मोरी
शंकर का भजन करे बिना जीव को राम भक्ति प्राप्त नही होगी.

शिव पु० वा० स० पू० खं० ६ | २१-२४


सर्वतः पाणिपादोsयं सर्वतोsक्षीशिरोमुखः। सर्वतः श्रुतिमाँल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति।। सर्वेन्द्रियगुणाभासः सर्वेन्द्रियविवर्जितः। सर्वस्य प्रभुरीशानः सर्वस्य शरणं सुहृत्।। अचक्षुरपि यः पश्यत्यकर्णोsपि श्रृणोंति यः। सर्वे वेत्ति न वेत्तास्य तमाहुः पुरुषं परम्।। अणोरणीयान्महतो माहीयानयमव्यय:। गुहायां निहितश्चापि जन्तोरस्य महेश्वरः।।


इनके सब ओर हाथ , पैर, नेत्र, मस्तक, मुख और कान हैं। ये लोकमें सबको व्याप्त करके स्थित हैं। ये सम्पूर्ण इन्द्रियों के विषयको जानने वाले हैं, परंतु वास्तव में सब इन्द्रियों से रहित हैं। सबके स्वामी, शासक, शरणदाता और सुहृद हैं। ये नेत्रके बिना भी देखते हैं और कानके बिना भी सुनते हैं। ये सबको जानते हैं किंतु इनको पूर्णरूप से जानने वाला कोई नही है। इन्हें परम पुरुष कहते हैं। ये अणुसे भी अत्यंत अणु और महान से भी परम महान हैं।ये अविनाशी महेश्वर इस जीवकी हृदय गुफामें निवास करते हैं। 


शिव पु० उमा संहिता से एक ध्यान मंत्र


यो धत्तो भुवनानि सप्त गुणवान् स्रष्टा रजः संश्रयः संहर्त्ता तमसन्वितो गुणवर्ती मायामतीत्य स्तिथः। सत्यानन्दमनन्तबोधममलं ब्रह्मादिसंज्ञास्पदं नित्यं सत्वसमन्वयादधिगतं पूर्णं शिवं धीमहि।।


जो रजोगुणका आश्रय ले संसारकी सृष्टि करते हैं, सत्वगुणसे सम्पन्न हो सातो भुवनोंका धारण-पोषण करते हैं, तमोगुणसे युक्त हो सबका संहार करते हैं तथा त्रिगुणमयी मायाको लाँघकर अपने शुद्ध स्वरूपसे स्थित रहते हैं, उन सत्यानंदस्वरूप शिवका हम ध्यान करते हैं। वे ही सृष्टि कालमें ब्रह्मा, पालन के समय विष्णु और संहारकालके समय रुद्र नाम धारण करते हैं तथा सदैव सत्त्विकभाव को अपनाने से ही प्राप्त होते हैं।


जिन्हें ये कपोल कल्पना लगती है उनके लिए 👇



दुर्ज्ञेया शाम्भवी माया सर्वेषां प्राणिनामिह । भक्तं विनार्पितात्मानं तया सम्मोह्यते जगत्

               -- (शिव पु० रु० सृ० २/२५)

वास्तवमें इस संसारके भीतर सभी प्राणियों के लिए शंभु की मायाको जानना कठिन है जिसने भगवान् शिवके चरणों में अपने आपको समर्पित कर दिया है, उस भक्तको छोड़कर शेष सारा जगत् उनकी माया से मोहित हो जाता है।


🔱🔱ॐ नमः शिवाय 🔱🔱

हर हर महादेव🙏🙏

हर हर महादेव🙏🙏

हर हर महादेव🙏🙏

हर हर महादेव🙏🙏

🙏🙏🙏 जय श्री महाकाल 🙏🙏🙏

Previous Post Next Post